रेखा गुप्ता बनीं दिल्ली की नई मुख्यमंत्री, बीजेपी ने जातीय और राजनीतिक संतुलन साधा

Sanjay kumar, 20 Feb.

नई दिल्ली : दिल्ली की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है, जब भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता रेखा गुप्ता ने गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बुधवार को उन्हें बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया, जिसके बाद उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया।

रेखा गुप्ता दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी इस पद को संभाल चुकी हैं। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने शालीमार बाग सीट से आम आदमी पार्टी की बंदना कुमारी को करीब 30,000 वोटों से हराया

नई मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियां

दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के बाद रेखा गुप्ता के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां होंगी। राजधानी का बेहतर प्रशासन, बीजेपी के चुनावी वादों को पूरा करना और मजबूत विपक्ष का सामना करना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल होगा। आम आदमी पार्टी पहली बार दिल्ली में विपक्ष की भूमिका निभा रही है, जिससे यह कार्य और भी कठिन हो सकता है।

जातीय और राजनीतिक संतुलन की रणनीति

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ने रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाकर महिला, वैश्य समुदाय और आरएसएस के संगठनों को साधने की रणनीति अपनाई है। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद की दौड़ में प्रवेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता और अजय महावर जैसे नाम शामिल थे, लेकिन रेखा गुप्ता के आरएसएस और एबीवीपी से गहरे संबंध और उनकी स्वच्छ छवि ने उन्हें इस रेस में आगे बढ़ा दिया

बीजेपी ने यह फैसला लेकर अरविंद केजरीवाल की राजनीति को एक घेरे में बांध दिया है। दिल्ली में वैश्य समुदाय की करीब 7% आबादी है और उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने इस वर्ग को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है।

भविष्य की राजनीति पर असर

बीजेपी ने यह निर्णय लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जातीय और सामाजिक संतुलन बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। राजस्थान और महाराष्ट्र में ब्राह्मण मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में क्षत्रिय मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश और हरियाणा में ओबीसी मुख्यमंत्री, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री के बाद अब दिल्ली में वैश्य वर्ग से महिला मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने अपनी समावेशी राजनीति को मजबूत किया है

रेखा गुप्ता के नेतृत्व में दिल्ली का राजनीतिक भविष्य किस दिशा में जाएगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन स्पष्ट है कि उनके सामने पार्टी के भीतर और बाहर कई बड़ी चुनौतियाँ होंगी।

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