बिजली निजीकरण पर गरजे इंजीनियर – “जनता के साथ विश्वासघात, सरकारी नियंत्रण से हटाना घातक

प्रमुख संवाद


बिजली महापंचायत में सरकार के निजीकरण नीति का कड़ा विरोध – “जनता और कर्मचारियों के हितों पर हमला”

छबड़ा, 11 मार्च 2025:
राजस्थान में सरकारी बिजली घरों के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन तेज होता जा रहा है। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति पिछले 165 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रही है, लेकिन सरकार उनकी आवाज सुनने को तैयार नहीं है। इसी कड़ी में मंगलवार को छबड़ा सुपर थर्मल पावर प्लांट में बिजली महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें ऑल इंडिया पावर इंजीनियर फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए।

“जनता के साथ विश्वासघात” – शैलेंद्र दुबे

अपने संबोधन में शैलेंद्र दुबे ने कहा कि सरकारी योजनाओं से सरकार धीरे-धीरे पीछे हट रही है। बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं को निजी हाथों में सौंपकर सरकार जनता के साथ धोखा कर रही है।

उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार संयुक्त उद्यम की आड़ में सरकारी बिजली घरों को निजी कंपनियों को सौंपने का षड्यंत्र कर रही है। राज्य सरकार की हिस्सेदारी वाली श्रेष्ठ यूनिट्स को निजी हाथों में सौंपकर उनके टैरिफ निर्धारण का अधिकार भी छीन लिया गया है, जिससे बिजली की दरों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी होगी और जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा

“छबड़ा प्लांट को बेचने की साजिश” – संघर्ष समिति

संघर्ष समिति के प्रदेश संयोजक राकेश गुप्ता ने कहा कि छबड़ा थर्मल पावर प्लांट को संयुक्त उद्यम के नाम पर निजी कंपनियों को सौंपने की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैयह प्लांट राज्य की सबसे किफायती और कुशल यूनिट्स में से एक है, लेकिन सरकार इसे निजी हाथों में देने के लिए गोपनीय समझौते कर रही है।

उन्होंने खुलासा किया कि सरकार ने 06 मार्च 2025 को एक आदेश जारी कर प्लांट के मुख्य पैरामीटर्स में बदलाव करने का फैसला लिया है, जिससे निजी कंपनियों को सीधा फायदा होगा। सरकार की यह नीति जनता के हितों के खिलाफ और संदेहास्पद है

“कर्मचारियों और उपभोक्ताओं के लिए गंभीर खतरा”

संघर्ष समिति के नेताओं ने बताया कि सरकार द्वारा अपनाई गई निजीकरण नीति से कर्मचारियों के भविष्य पर भी संकट मंडरा रहा है। उन्हें समय पर वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएं मिलने की गारंटी नहीं दी गई है। सरकार न तो सेवा शर्तों को स्पष्ट कर रही है और न ही कर्मचारियों से संवाद करने को तैयार है

संघर्ष समिति ने सरकार से मांग की है कि –

  1. संयुक्त उद्यम की नीति तुरंत रद्द की जाए।
  2. बिजली क्षेत्र का सरकारी नियंत्रण बरकरार रखा जाए।
  3. निजीकरण के कारण बढ़ने वाली बिजली दरों पर स्पष्ट गारंटी दी जाए।
  4. कर्मचारियों के भविष्य और सेवा शर्तों पर पारदर्शी नीति घोषित की जाए।

संघर्ष समिति ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने जनता और कर्मचारियों के हितों की अनदेखी जारी रखी, तो आंदोलन और उग्र होगा।


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