Written by : प्रमुख संवाद
कोटा, 13 मई: राजस्थान पुलिस में तैनात अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) और वर्तमान में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (SDRF) के डिप्टी कमांडेंट राकेश पाल पर एक बार फिर गंभीर आरोप लगे हैं। कोटा शहर के एक प्रमुख शराब व्यवसायी नरेंद्र सचदेवा उर्फ बिट्टू ने उनके खिलाफ 1.80 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए नयापुरा थाने में मामला दर्ज कराया है।
यह आरोप ऐसे समय सामने आया है जब राकेश पाल के खिलाफ पहले से ही आधा दर्जन से अधिक आपराधिक प्रकरण विभिन्न थानों में दर्ज हैं। नयापुरा थानाधिकारी राजपाल सिंह ने बताया कि शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है और जांच का जिम्मा सब-इंस्पेक्टर नंद सिंह को सौंपा गया है।
क्या है मामला:
शिकायतकर्ता नरेंद्र सचदेवा ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2015 में ASP राकेश पाल को 25 लाख रुपये उधार दिए थे। साथ ही उनके अकाउंटेंट राजू राठौड़ ने 70 लाख रुपये का गबन कर लिया, जिसके पास उनके कई ब्लैंक चेक भी थे। आरोप है कि राकेश पाल ने तीसरे पक्ष के रूप में हस्तक्षेप करते हुए गबन की राशि को 40 लाख में निपटाने का दबाव बनाया और बदले में बालाजी नगर कुन्हाड़ी के 22 प्लॉट की फाइलें दीं, जिनकी कथित कीमत 2.25 करोड़ बताई गई।
शिकायतकर्ता के अनुसार, 1.15 करोड़ रुपये की राशि दो महीने में राकेश पाल को दे दी गई, लेकिन संबंधित खातेदार को भुगतान न होने के कारण आज तक उन प्लॉटों का कब्जा नहीं मिल पाया। सचदेवा का कहना है कि 8 वर्षों से वे लगातार निवेदन कर रहे हैं, परंतु उन्हें धमकाया जा रहा है, यहां तक कि ब्लैंक चेक के माध्यम से भी डराया गया है।
पहले भी दर्ज हैं कई गंभीर मामले:
राकेश पाल पर इससे पूर्व भी कई मामलों में एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें जमीन खरीद-फरोख्त में धोखाधड़ी, बल प्रयोग, धमकी और अवैध कब्जा जैसे आरोप शामिल हैं। इस बार का मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पैसे की लेन-देन के अलावा पद के दुरुपयोग का आरोप भी स्पष्ट रूप से सामने आया है।
क्या कहती है पुलिस:
नयापुरा थाना प्रभारी ने बताया कि प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है और सभी पक्षों से बयान लिए जा रहे हैं। दस्तावेजों की सत्यता एवं फाइलों की वास्तविक स्थिति का भी परीक्षण किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पर बार-बार गंभीर आपराधिक आरोप लगना न केवल विभाग की छवि को धूमिल करता है, बल्कि आम नागरिकों का कानून व्यवस्था में विश्वास भी कमजोर करता है। अब देखना यह होगा कि पुलिस प्रशासन इस मामले की जांच कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता से करता है, और क्या वाकई दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई होती है।