Written by : Sanjay kumar
नई दिल्ली, 13 अगस्त 2025 — सुप्रीम कोर्ट में आज आवारा कुत्तों के प्रबंधन को लेकर एक अहम सुनवाई के दौरान पुराने आदेशों को “अव्यवहारिक” और “जमीनी हकीकत से कटा” बताते हुए चुनौती दी गई। कॉन्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया) नामक संगठन द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया कि पूर्व में पारित आदेशों के कारण आवारा कुत्तों के नसबंदी और टीकाकरण जैसे ठोस कदम लागू नहीं हो पा रहे हैं, जिससे जनसुरक्षा खतरे में है और पशु कल्याण की वास्तविक भावना भी प्रभावित हो रही है।

याचिकाकर्ता का आरोप
वकील ने अदालत को बताया कि न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने मई 2024 में आदेश देकर इस विषय से संबंधित सभी याचिकाओं को उच्च न्यायालयों में भेज दिया था। साथ ही यह निर्देश भी दिया गया था कि किसी भी परिस्थिति में कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं होगी और मौजूदा कानूनों के अनुरूप करुणा के साथ कार्रवाई करनी होगी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह आदेश जमीनी हालात को नजरअंदाज करता है—जहां आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या स्कूलों, कॉलोनियों और सार्वजनिक स्थलों पर लगातार हमलों और संक्रमण का कारण बन रही है।
पुराना आदेश बनाम नई चुनौती
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सुनवाई में कहा कि एक अन्य पीठ पहले ही इस मुद्दे पर आदेश दे चुकी है। उन्होंने न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ के 11 अगस्त 2025 के आदेश का जिक्र किया, जिसमें दिल्ली में आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने के निर्देश दिए गए थे।
वकील का कहना है कि इस तरह के समाधान अस्थायी और अव्यावहारिक हैं, क्योंकि न तो पर्याप्त आश्रय गृह हैं और न ही उनकी देखभाल के संसाधन।
सीजेआई की प्रतिक्रिया
जब वकील ने विस्तार से पुराने आदेशों की खामियां गिनाईं, तो मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा—“मैं इस पर गौर करूंगा।” यह बयान संकेत देता है कि सुप्रीम कोर्ट पुराने आदेशों की समीक्षा पर विचार कर सकती है और आवश्यक हुआ तो आवारा कुत्तों के प्रबंधन पर नई दिशा दे सकती है।
मामला क्यों अहम है?
यह मामला सिर्फ आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने का नहीं है, बल्कि इसमें जनसुरक्षा, संक्रमण रोकथाम, पशु अधिकार, और संवैधानिक मूल्यों का जटिल संतुलन शामिल है। कोर्ट का आने वाला फैसला यह तय करेगा कि क्या नीति जमीनी हकीकत के अनुसार बदलेगी या वर्तमान व्यवस्था बरकरार रहेगी।
