सुप्रीम कोर्ट में ‘डॉग डिस्प्यूट’ पर हाई-वोल्टेज बहस – 11 अगस्त आदेश पर रोक? निर्णय सुरक्षित, सभी पक्षों से हलफनामे मांगे

Written by : Sanjay kumar


नई दिल्ली, 14 अगस्त 2025।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली–एनसीआर के आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने संबंधी 11 अगस्त 2024 के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की याचिका पर गुरुवार को सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा। तीन सदस्यीय पीठ — जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया — ने कहा कि यह मामला मानवीय पीड़ा और पशु-प्रेम के बीच संतुलन का है, जिसकी जड़ स्थानीय निकायों की विफलता में है। अदालत ने सभी हस्तक्षेपकर्ताओं और एजेंसियों को शपथपत्र के साथ ठोस आंकड़े व साक्ष्य पेश करने के निर्देश दिए।


डॉग लवर्स का पक्ष — कपिल सिब्बल की दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने डॉग लवर्स की ओर से तर्क दिया कि—

  • आदेश बिना नोटिस और स्वतः संज्ञान में जारी हुआ, जो न्यायसंगत नहीं।
  • कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है, लेकिन पर्याप्त शेल्टर नहीं हैं।
  • कम जगह वाले शेल्टर कुत्तों को और आक्रामक बना सकते हैं।
  • पहले नसबंदी (ABC), टीकाकरण और रिहैबिलिटेशन की व्यवस्था हो, तभी कुत्तों को हटाया जाए।
    उन्होंने कोर्ट से 11 अगस्त के आदेश पर तत्काल रोक की मांग की।

सरकार का पक्ष — SG तुषार मेहता की दलीलें

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि—

  • देश में हर साल करीब 37 लाख लोग कुत्तों के काटने के शिकार होते हैं, रोज़ाना लगभग 10 हज़ार केस आते हैं।
  • 2024 में 305 लोगों की मौत रेबीज़ से हुई, WHO मॉडल के अनुसार असली संख्या इससे ज़्यादा हो सकती है।
  • केवल नसबंदी/टीकाकरण से अंग-भंग और काटने की घटनाएं नहीं रुकतीं।
  • बच्चों, बुजुर्गों और आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए कुत्तों को मानवीय बस्तियों से अलग रखना ज़रूरी है।
  • कई लोग सोशल मीडिया पर खुद को एनिमल लवर बताकर वीडियो डालते हैं, लेकिन बेजगह मांसाहार खिलाकर कुत्तों के व्यवहार को आक्रामक बनाते हैं।

अन्य हस्तक्षेप — मनु सिंघवी का विरोध

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि—

  • इस वर्ष दिल्ली में रेबीज़ से एक भी मौत नहीं हुई।
  • काटने की घटनाएं गंभीर हैं, लेकिन डर का माहौल बनाना उचित नहीं।
  • 11 अगस्त का आदेश अत्यधिक कठोर है, जिस पर पुनर्विचार होना चाहिए।

कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां

  • यह मामला मानव सुरक्षा बनाम पशु अधिकार का है; समाधान संतुलित और क्रियान्वयन योग्य होना चाहिए।
  • नगर निगम की विफलता से समस्या बढ़ी है; अब उन्हें डेटा-आधारित योजना और क्षमता रिपोर्ट देनी होगी।
  • सभी पक्ष हलफनामा और साक्ष्य प्रस्तुत करें; अगला आदेश इन्हीं तथ्यों पर आधारित होगा।
  • तत्काल कोई स्टे नहीं, लेकिन सभी पक्षों को जिम्मेदारी के साथ समाधान सुझाने को कहा गया।

निष्कर्ष / आज का निर्णय

  1. तत्काल रोक नहीं — 11 अगस्त आदेश पर फिलहाल स्टे नहीं दिया गया, स्थिति यथावत रहेगी।
  2. निर्णय सुरक्षित — अंतरिम रोक पर फैसला सभी पक्षों के हलफनामे आने के बाद सुनाया जाएगा।
  3. डेटा-ड्रिवन अगला कदम — स्थानीय निकायों को शेल्टर क्षमता, ABC कवरेज, टीकाकरण आंकड़े, बजट और समयरेखा सहित ठोस योजना देनी होगी।
  4. नीति संतुलन पर संकेत — कोर्ट का रुख साफ, न तो अंधाधुंध पकड़-धकड़ और न ही अनियंत्रित आवारा कुत्तों को सड़कों पर छोड़ना; समाधान मानवीय और कानूनसम्मत होना चाहिए।

ग्राउंड-इम्पैक्ट

  • नागरिक/स्कूल: फिलहाल बड़े बदलाव नहीं; लेकिन नगर निगम की गतिविधियों की वैधता और मानकों पर कोर्ट की नजर रहेगी।
  • फीडर्स/एनजीओ: कोर्ट ने जिम्मेदारी तय की है—खिलाने और स्थानांतरण की प्रक्रिया वैधानिक गाइडलाइन्स में हो।
  • नगर निकाय: अगली तारीख से पहले ठोस कार्ययोजना और आंकड़े दाखिल करने होंगे, अन्यथा कठोर टिप्पणियां संभव।

📌 यह मामला अब सिर्फ कुत्तों या इंसानों की बहस नहीं रहा, बल्कि कानून, नीति, और संवेदनशीलता—तीनों के बीच संतुलन की अग्निपरीक्षा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट का अगला आदेश इस दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है।


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