कागजों में कैटल फ्री, जमीनी हकीकत में पशुपालकों का कब्जा- हादसों को न्योता देती प्रशासन की चुप्पी

Written by : प्रमुख संवाद



कोटा, 20 अगस्त।
अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा की तैयारियों का जायजा लेने जिला कलक्टर पीयूष समारिया, आईजी कोटा रेंज राजेन्द्र प्रसाद गोयल एवं अन्य अधिकारियों ने बुधवार को रूट विजिट किया। सूरजपोल गेट से लेकर बारादरी तक लगभग 3.5 किमी लंबे मार्ग का निरीक्षण करते समय सड़क की सफाई, बिजली व्यवस्था, बैरिकेडिंग और जर्जर भवनों को चिन्हित करने जैसे निर्देश दिए गए।

लेकिन इस निरीक्षण ने प्रशासन की एक और बड़ी विफलता को उजागर कर दिया। यह वही मार्ग है, जहां पूर्व में तत्कालीन मंत्री द्वारा “कोटा को कैटल फ्री बनाने” का दावा किया गया था और इसके लिए विशेष रूप से देवनारायण योजना शुरू की गई थी। अफसोस की बात यह है कि आज भी शहर के मुख्य बाजारों और मार्गों पर आवारा पशु खुलेआम विचरण करते नजर आ रहे हैं।

जब संभाग स्तर के अधिकारी और आईएएस-आईपीएस अधिकारी स्वयं पैदल चल रहे थे, उसी समय इन मुख्य सड़कों पर मवेशी बेधड़क घूमते देखे गए। स्थिति यह है कि यही पशु कभी भी किसी अधिकारी या आमजन पर हमला कर सकते थे। यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर क्यों इन पशुओं की मौजूदगी को अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया?


देवनारायण योजना का हश्र

जिस योजना का उद्देश्य शहर को कैटल फ्री बनाना था, यह योजना मलाई खाने के लिए तो बहुत अच्छी रही परंतु कार्य करने और लागू करने पर पूरी तरह विफल साबित हुई है। पशुपालक अब भी प्रमुख स्थानों पर कब्जा जमाए हुए हैं। नगर निगम द्वारा समय-समय पर औपचारिक कार्रवाई तो दिखाई देती है, लेकिन वास्तव में इन मवेशियों को केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए उठाया जाता है। बाद में चालान काटकर या शुल्क लेकर इन्हें छोड़ दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या यही ‘कैटल फ्री कोटा’ का मॉडल है?


कानून और नियम क्या कहते हैं?

राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009 की धारा 98(2) और राजस्थान नगर निगम अधिनियम, 2009 की धारा 102 के तहत नगर निगम पर यह जिम्मेदारी है कि वह सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं को हटाए और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट ने भी समय-समय पर आदेश दिए हैं कि आवारा पशुओं को नियंत्रण में रखना स्थानीय निकायों की बाध्यकारी जिम्मेदारी है।

सटीक हादसों के आंकड़े और रिपोर्ट

2023 में एक दुर्घटना में कोटा निवासी पुष्प दयाल नगर (41 वर्ष) की मौत हो गई, जब उनकी कार बीओरखेड़ा पुलिया पर बचने की कोशिश में डिवाइडर से टकराकर पलट गई थी। यह आकस्मिकता आवारा पशुओं से बचने की प्रक्रिया में हुई थी।

रajasthan High Court ने 12 अगस्त 2025 को स्वतः ही जनहित याचिका (PIL) में सड़कों पर घूमते आवारा जानवरों पर चिंता जताई, और नगर निगमों को तत्काल हटाने के निर्देश दिए। इस संदर्भ में कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह समस्या सुनियोजित कार्रवाई से ही दूर की जा सकती है।

राष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, भारत में 2018-22 के बीच ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में आवारा पशुओं से होने वाले सड़क दुर्घटनाओं में हजारों लोग मारे गए थे। उदाहरण के लिए, केवल हरियाणा राज्य में ही इस अवधि में 900 से अधिक मौतें दर्ज की गईं — जो समस्या की व्यापकता को दर्शाती है।

राष्ट्रीय पशुधन जनगणना 2020 (जातीय स्रोत) के अनुसार भारत में 50 लाख से अधिक आवारा गायें पाई गईं, जो पूरे प्रदेशों में इस समस्या की ज्वलंतता को उजागर करता है।


कानून और अदालतों की मांगें

राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009 की धारा 98(2) और नगर निगम अधिनियम की धारा 102 स्पष्ट रूप से स्थानीय निकायों (नगर निगम/नगर पालिकाओं) पर सड़कों से आवारा पशुओं को हटाने की जिम्मेदारी डालती हैं।

इसके अलावा, राजस्थान उच्च न्यायालय ने (2025 में) सड़क safety की दृष्टि से साफ निर्देश जारी किए कि नगर निगम ऐसे प्रतिबंध लगाए, आवारा जानवरों को संरक्षित तरीके से हटाया जाए, और ऐसे लोगों के खिलाफ एफआईआर की जाएँ जो कार्रवाई में बाधा डालते हैं।



प्रशासन आंखें क्यों मूंदे बैठा है?

जब संभाग स्तर के आलाधिकारियों की उपस्थिति में भी आवारा पशु खुलेआम विचरण करते नजर आए, तो यह साफ संकेत है कि या तो प्रशासन ने इस समस्या को गंभीरता से लेना ही बंद कर दिया है, या फिर राजनीतिक दबाव में कार्रवाई करने से बच रहा है। यह स्थिति न केवल कानून के उल्लंघन को दर्शाती है बल्कि आमजन के जीवन को निरंतर खतरे में डाल रही है।


निष्कर्ष

कोटा को कैटल फ्री बताना अब केवल एक राजनीतिक जुमला बन चुका है। हकीकत यह है कि शहर की मुख्य सड़कों और बाजारों पर आवारा पशु अब भी हादसों को न्योता दे रहे हैं। शोभायात्रा जैसी बड़ी धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में लाखों लोग शामिल होंगे, ऐसे में इन पशुओं की मौजूदगी किसी बड़ी अनहोनी का कारण बन सकती है।

प्रशासन को चाहिए कि वह केवल औपचारिक निरीक्षण कर अपनी जिम्मेदारी पूरी न समझे, बल्कि कागजों में दबी योजनाओं को धरातल पर उतारकर वास्तव में कैटल फ्री कोटा बनाने की दिशा में ठोस कार्रवाई करे।


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