Written by : Sanjay kumar
जयपुर, 19 दिसम्बर। राजस्थान में कार्यकाल समाप्त कर चुके शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव अब 15 अप्रैल से आगे स्थगित नहीं किए जा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका पर हस्तक्षेप से इनकार करते हुए इसे खारिज कर दिया है। इसके साथ ही यह स्थिति स्पष्ट हो गई है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक प्रशासक अपने पदों पर बने रहेंगे।
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की खंडपीठ ने की। अदालत ने कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट पहले ही चुनाव कराने की अंतिम समयसीमा निर्धारित कर चुका है और राज्य सरकार ने भी उसी अवधि में चुनाव संपन्न कराने का आश्वासन दिया है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर किसी अतिरिक्त दखल की आवश्यकता नहीं बनती।
चुनाव टालने के लिए परिसीमन को आधार बनाए जाने के तर्क को भी अदालत ने स्वीकार नहीं किया। याचिकाकर्ता की ओर से यह दलील रखी गई कि लंबे समय तक चुनाव न होने से लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर होती हैं और प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हाईकोर्ट के पूर्व आदेश में भी यही स्पष्ट किया गया था कि परिसीमन प्रक्रिया को चुनाव में अनावश्यक देरी का कारण नहीं बनाया जा सकता।
राज्य सरकार की ओर से अदालत को अवगत कराया गया कि नगर निगमों के वार्ड परिसीमन का कार्य लगभग अंतिम चरण में है और समूची चुनावी प्रक्रिया तय समयसीमा के भीतर पूरी कर ली जाएगी। यह भी कहा गया कि यदि इस स्तर पर न्यायिक हस्तक्षेप होता है तो परिसीमन और प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के आश्वासन को रिकॉर्ड पर लेते हुए याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि राजस्थान में शहरी निकाय और पंचायत चुनाव 15 अप्रैल तक अनिवार्य रूप से कराए जाएंगे और चुनाव संपन्न होने तक प्रशासक अपने-अपने पदों पर कार्यरत रहेंगे।
