Written by : Sanjay kumar
नई दिल्ली, 26 अप्रैल 2025
भारत सरकार ने कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद एक ऐतिहासिक और कड़े कदम के तहत 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। यह निर्णय पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के प्रति भारत की “जीरो टॉलरेंस” नीति के तहत लिया गया है। भारत ने रावी नदी का जल प्रवाह पूरी तरह रोकने के साथ-साथ अन्य नदियों पर अपने अधिकार के विस्तार की दिशा में काम शुरू कर दिया है।
सिंधु जल संधि: पृष्ठभूमि और प्रावधान
- 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी।
- भारत को रावी, ब्यास और सतलुज (पूर्वी नदियाँ) का पूर्ण अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब (पश्चिमी नदियाँ) का नियंत्रण सौंपा गया।
- भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का सीमित उपयोग (रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट्स) के लिए अनुमति दी गई थी।
भारत का वर्तमान निर्णय
- भारत ने रावी नदी का पानी अब पूरी तरह पाकिस्तान जाने से रोक दिया है।
- शाहपुर कंडी बैराज, उझ परियोजना और अन्य संरचनाओं द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत अपने हिस्से का जल उपयोग में लाए।
- यह निर्णय आतंकी हमलों के खिलाफ रणनीतिक प्रतिक्रिया है, जिसमें पाकिस्तान को प्रत्यक्ष रूप से जल संसाधनों की मार झेलनी पड़ेगी।
पाकिस्तान पर क्षेत्रवार प्रभाव
1. पंजाब (पाकिस्तान)
- पंजाब प्रांत की 80% से अधिक कृषि सिंचाई सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है।
- जल प्रवाह में कमी से गेहूं, गन्ना, चावल जैसी फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा।
- किसान आंदोलनों, खाद्य संकट और ग्रामीण बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
2. सिंध
- सिंधु नदी के डेल्टा क्षेत्र में मीठे पानी की आपूर्ति पहले ही सीमित है।
- जल प्रवाह बंद होने से समुद्री जल का अतिक्रमण होगा, जिससे थट्टा, बदीन जैसे तटीय जिलों में भूमि बंजर हो सकती है।
- मछली पालन और नमक उद्योग पर भी गहरा असर पड़ेगा।
3. खैबर पख्तूनख्वा और पीओके
- झेलम और चिनाब के प्रवाह में रुकावट इन क्षेत्रों की जलविद्युत परियोजनाओं को प्रभावित करेगी।
- नेलम-झेलम पनबिजली परियोजना की क्षमता घटेगी, जिससे बिजली संकट पैदा हो सकता है।
4. इस्लामाबाद व लाहौर जैसे शहर
- शहरी जल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा इन नदियों पर निर्भर करता है।
- जल संकट से टैंकर माफिया और काला बाज़ारी को बल मिलेगा।
पाकिस्तान की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- कृषि और ऊर्जा दो प्रमुख सेक्टर हैं, जिनसे पाकिस्तान की GDP का बड़ा हिस्सा आता है।
- जल की कमी से खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी और आयात निर्भरता भी।
- बिजली उत्पादन घटने से औद्योगिक उत्पादन ठप्प हो सकता है।
- इससे पाकिस्तान का चालू खाता घाटा और IMF पर निर्भरता और बढ़ सकती है।
पाकिस्तान के लिए संकट की घड़ी: ‘जल युद्ध’ का खतरा
- पाकिस्तान सरकार ने भारत के कदम को “युद्ध की कार्यवाही” कहा है और अंतरराष्ट्रीय मंचों का रुख किया है।
- लेकिन विश्व बैंक पहले ही कह चुका है कि वह इस विवाद में हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक दोनों पक्ष सहमत न हों।
- ऐसे में पाकिस्तान की स्थिति राजनयिक रूप से भी कमजोर हो रही है।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
- भारत अब अपने हिस्से का जल उपयोग कर सकता है जो पहले बिना इस्तेमाल पाकिस्तान जा रहा था।
- इससे पंजाब, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सिंचाई, पेयजल और बिजली उत्पादन में क्रांतिकारी सुधार आएगा।
- यह पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क पर अप्रत्यक्ष आर्थिक प्रहार के रूप में भी देखा जा रहा है।
भारत का यह निर्णय केवल जल नीति में बदलाव नहीं बल्कि एक स्पष्ट सामरिक चेतावनी है। इससे यह संदेश गया है कि अब पाकिस्तान की हर हरकत का जवाब सिर्फ सैन्य मोर्चे पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक और संसाधन आधारित दबाव के रूप में भी दिया जाएगा। यदि पाकिस्तान ने आतंकवाद का समर्थन नहीं रोका, तो आने वाले वर्षों में सिंधु जल संधि पूरी तरह रद्द की जा सकती है, जिससे उसकी संप्रभुता, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था तीनों पर खतरा मंडराएगा।