Written by : लेखराज शर्मा
जर्जर छतों के नीचे कब तक पढ़ेंगे बच्चे? सरकार फिर कर रही हादसों का इंतजार
शाहाबाद, बारां, 26 जुलाई।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शाहाबाद की जर्जर हालत ने न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि जिम्मेदारों की संवेदनहीनता को भी उजागर कर दिया है। करीब 60 वर्ष पुरानी इस विद्यालय की छतें दरक रही हैं, प्लास्टर गिर रहा है, दीवारों पर काई जम चुकी है और बरसात में कमरों के भीतर पानी टपकना आम बात बन चुकी है। ऐसे हालातों में छात्र-छात्राओं को जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करनी पड़ रही है।



विद्यालय भवन में महज 8-10 कक्ष हैं, जबकि आवश्यकता कम से कम 20 कमरों की है। बावजूद इसके सरकार ने न तो नए भवन का निर्माण कराया और न ही मरम्मत का स्थायी हल निकाला। एक साल पहले की गई मरम्मत भी महज दिखावा साबित हुई। वर्तमान में प्लास्टर झड़ रहा है और कक्षा में बैठना खतरनाक बना हुआ है।
सरकारी वितरण सामग्री भी होती है खराब
शाहाबाद विद्यालय नोडल केंद्र होने के कारण यहीं से पाठ्यपुस्तकों और साइकिलों का वितरण होता है। बरसात में छतों से टपकते पानी के कारण किताबें भीगकर खराब हो जाती हैं, जिससे विद्यार्थियों को दोहरी मार झेलनी पड़ती है। स्कूल की बरामदों में भी पानी भर जाता है जिससे बच्चों का आवागमन भी प्रभावित होता है।
प्रधानाचार्य कक्ष की हालत भी बेहद खराब
विद्यालय के प्रधानाचार्य कक्ष की छत की पट्टियां भी टूट चुकी हैं। कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। ऐसी स्थिति में विद्यालय में अध्यापन कार्य कराना भी डरावना अनुभव है।
कस्बेवासियों का आक्रोश – “बच्चों की जिंदगी से हो रहा खिलवाड़”
स्थानीय नागरिक अरविंद बंसल, सुरेश सोनी, राजकुमार नामदेव, महेंद्रसिंह तोमर, परमसुख और श्यामलाल सहरिया आदि ने कहा कि सरकार पर्यटन विकास के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन बच्चों की जान और भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। 60 साल पुराने विद्यालय भवन की मरम्मत या पुनर्निर्माण पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
राष्ट्रीय पर्व होते हैं यहीं, फिर भी अनदेखी
उपखंड स्तर के गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व एवं अन्य कार्यक्रम भी इसी विद्यालय में होते हैं, लेकिन बार-बार की गई शिकायतों, ज्ञापनों और अधिकारियों को दी गई सूचना के बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है।
अब कार्रवाई नहीं तो आंदोलन
कस्बेवासियों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र ही विद्यालय भवन की मरम्मत या नया भवन स्वीकृत नहीं किया गया तो बड़ा जन आंदोलन खड़ा किया जाएगा और जिम्मेदार अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को कटघरे में खड़ा किया जाएगा।
