आपातकाल का कालादिन: अंधेरे में जलाई गई प्रतिरोध की मशाल – रामस्वरूप गुप्ता

Written by : प्रमुख संवाद


कोटा, 24 जून। आपातकाल (1975-77) के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ के कार्यकर्ताओं पर अत्याचार और दमन के विरुद्ध जनआंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रामस्वरूप गुप्ता ने उस दौर की स्मृतियों को साझा करते हुए बताया कि वह समय जैसे अंधे कुएं में कूदने जैसा था।

आपातकाल लगने के बाद शाखाएं, राजनीतिक गतिविधियां और खुली बैठकें पूरी तरह बंद हो गई थीं। भूमिगत कार्यकर्ताओं ने नाम और पहचान बदलकर संपर्क साधा। समाचार पत्रों में सेंसरशिप के चलते, सत्य के प्रचार के लिए साइक्लोस्टाइल पत्रक रात्रि में घरों और दुकानों में चुपचाप डाले जाते थे।

14 नवम्बर 1975 को देशव्यापी आंदोलन की घोषणा के तहत कोटा में 14 लोगों की टोली ने चार भागों में बंटकर विभिन्न स्थानों से नारेबाजी और पत्रक वितरण किया। महात्मा गांधी चौक पर पहुंचने पर पुलिस ने गिरफ्तार कर रामपुरा कोतवाली ले जाया। सभी ने गिरफ्तारी देने से पहले नारेबाजी की और जमानत लेने से इनकार किया।

जेल में मीसाबंदियों ने प्रशासन के अन्याय के खिलाफ कई बार विरोध प्रदर्शन किए। 12 जनवरी 1976 को जेल में ही हुए झगड़े के बाद जेल तोड़ने का मुकदमा चला। 18 फरवरी को बहन की शादी के दिन ही राजस्थान हाईकोर्ट से जमानत मिली। बाद में आंदोलन जारी रखा गया।

25 जून को ‘काला दिवस’ मनाने का आदेश मिला। पुलिस की सख्त नाकाबंदी के बावजूद रात में गोपनीय स्थानों पर पोस्टर लगाए गए। गुप्ता ने बताया कि कई वरिष्ठ नेता जेल में थे, लेकिन डर के बजाय साहस से काम लिया गया।


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