Written by : प्रमुख संवाद
कोटा, 31 जुलाई 2025।
महान साहित्यकार प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर विकल्प जन सांस्कृतिक मंच द्वारा एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें उनके जीवन संघर्ष, रचनाओं और पात्रों को केन्द्र में रखते हुए प्रेमचंद की विरासत को जीवंत किया गया।
समारोह की शुरुआत प्रेमचंद की चर्चित कहानी “दो बैलों की कहानी” पर आधारित फिल्मी गीत की प्रस्तुति से हुई, इसके बाद उनकी कहानी “मंत्र” पर आधारित एक लघु फिल्म का प्रदर्शन किया गया, जिसने उपस्थित साहित्यप्रेमियों को भाव-विभोर कर दिया।



कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश राय द्विवेदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि “प्रेमचंद के आदर्शों को वर्तमान युवा पीढ़ी तक पहुंचाना समय की मांग है।”
मुख्य अतिथि, हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष रमेश वर्मा ने प्रेमचंद के पात्रों—किसानों, मजदूरों और समाज के हाशिये पर खड़े लोगों—की चर्चा करते हुए कहा कि “प्रेमचंद के साहित्य में हमें सामाजिक न्याय, संवेदना और यथार्थ का समग्र स्वरूप देखने को मिलता है, और आज के दौर में यह लेखन और अधिक प्रासंगिक हो गया है।”
समारोह के दूसरे सत्र में अंचल के तीन कथाकारों को “विकल्प कथा सम्मान” से नवाजा गया।
- सुषमा अग्रवाल को उनकी हिंदी कहानी “विकलांग”,
- डॉ. ज़ेबा फ़िज़ा को उर्दू कहानी “दाग़”,
- और चांदलाल चकवाला को हाड़ौती कहानी “लाड़ो ठेका पे” के लिए सम्मानित किया गया।
तीनों कथाकारों ने अपनी-अपनी कहानियों का प्रभावशाली पाठ किया। उनके रचना संसार पर समीक्षकों नारायण शर्मा और डॉ. नंद किशोर महावर ने विस्तृत विचार प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव को “प्राइड ऑफ कोटा – विकल्प विशेष सम्मान” से अलंकृत किया गया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि “हमें यह विचार करना चाहिए कि यदि प्रेमचंद आज जीवित होते तो इस समय की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों को कैसे देखते?”
समारोह में गुरुदेव प्रभाकर साहेब ने कबीर दर्शन और प्रेमचंद की विचारधारा को जोड़ते हुए कहा कि “आज के समाज को प्रेमचंद और कबीर जैसे विचारशील, निर्भीक और जनपक्षधर लेखकों की सख्त ज़रूरत है।”
कार्यक्रम का कुशल संचालन महेन्द्र नेह ने किया, जबकि प्रेमचंद की कृतियों पर आधारित प्रथम सत्र का संयोजन भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय राघव द्वारा किया गया।
समारोह में साहित्य, संस्कृति और समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहन संवाद हुआ, जिसने प्रेमचंद की रचनात्मक चेतना को आज के संदर्भ में पुनर्परिभाषित किया।
