Written by : Sanjay kumar
“भाजपा ने नितिन नबीन को गाड़ी दी है, लेकिन स्टेयरिंग अब भी सुरक्षित हाथों में है।”
नई दिल्ली, 15 दिसंबर 2025।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद देश की राजनीति में एक अहम सवाल खड़ा हो गया है — क्या यह भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की शुरुआत है, या फिर एक अस्थायी व्यवस्था, जिसमें जिम्मेदारी तो दी गई है लेकिन वास्तविक सत्ता अब भी शीर्ष नेतृत्व के पास सुरक्षित रखी गई है?
भाजपा ने नितिन नबीन को राष्ट्रीय अध्यक्ष न बनाकर कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। यह निर्णय अपने आप में कई संकेत देता है। पार्टी ने उन्हें संगठन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन निर्णय लेने की अंतिम ताकत अभी भी संसदीय बोर्ड और शीर्ष नेतृत्व के हाथ में ही है। सरल शब्दों में कहा जाए तो नितिन नबीन गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन स्टेयरिंग उनके हाथ में नहीं है। एक्सीलेटर और ब्रेक दबाने की अनुमति तो है, लेकिन दिशा तय करने का अधिकार ऊपर के नेतृत्व के पास ही है।
कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नितिन नबीन संगठन के रोज़मर्रा के काम, राज्यों के साथ समन्वय, पार्टी कार्यक्रमों और कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने का दायित्व निभाएंगे। लेकिन मुख्यमंत्री चयन, गठबंधन की राजनीति, बड़े अनुशासनात्मक फैसले और राष्ट्रीय राजनीतिक दिशा तय करने जैसे निर्णय उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं होंगे। ये सभी फैसले पहले की तरह संसदीय बोर्ड और केंद्रीय नेतृत्व द्वारा ही लिए जाएंगे।
पार्टी के भीतर इस फैसले को एक परीक्षण काल के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा की परंपरा रही है कि किसी भी नेता को शीर्ष पद पर बैठाने से पहले उसे संगठनात्मक जिम्मेदारियों में परखा जाता है। इस दृष्टि से नितिन नबीन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाना उनके लिए एक अवसर भी है और परीक्षा भी।
लेकिन इसके साथ ही आलोचनात्मक दृष्टिकोण भी सामने आ रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कार्यकारी अध्यक्ष का पद कई बार केवल एक संक्रमणकालीन व्यवस्था भी साबित होता है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या नितिन नबीन को भविष्य का राष्ट्रीय अध्यक्ष माना जाए, या फिर यह पद केवल तब तक के लिए है जब तक भाजपा किसी और चेहरे पर अंतिम फैसला नहीं कर लेती।
यह भी पूरी संभावना है कि आने वाले समय में भाजपा किसी नए या अलग चेहरे को पूर्णकालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सामने लाए। पार्टी के पास विकल्प खुले हैं — यदि नितिन नबीन संगठनात्मक रूप से सफल रहते हैं तो उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यदि पार्टी को किसी अन्य संतुलन, क्षेत्रीय समीकरण या राजनीतिक आवश्यकता की जरूरत पड़ी तो नेतृत्व का चेहरा बदलना भी असंभव नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका को लेकर भी चर्चाएं जारी हैं। भाजपा और आरएसएस के बीच वैचारिक और संगठनात्मक संवाद कोई नई बात नहीं है, लेकिन फिलहाल इस नियुक्ति को लेकर कोई सार्वजनिक भूमिका सामने नहीं आई है। माना जा रहा है कि मंथन अंदरूनी स्तर पर जरूर हुआ होगा, लेकिन अंतिम निर्णय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने ही लिया है।
कुल मिलाकर, नितिन नबीन की नियुक्ति भाजपा की उस कार्यशैली को दर्शाती है जिसमें सत्ता को धीरे-धीरे सौंपा जाता है, न कि अचानक। यह पद न तो पूरी तरह शक्तिहीन है और न ही पूर्ण अधिकारों वाला। यह एक ऐसा मॉडल है जिसमें नेता को काम करने दिया जाता है, लेकिन निगरानी और नियंत्रण शीर्ष नेतृत्व के पास बना रहता है।
अब देखना यह होगा कि नितिन नबीन इस भूमिका को केवल एक औपचारिक जिम्मेदारी के रूप में निभाते हैं, या अपने प्रदर्शन से यह साबित करते हैं कि भविष्य में भाजपा की पूरी कमान उनके हाथों में भी सौंपी जा सकती है।
(इस लेख में अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति कोई भी उत्तरदायी नहीं है।)
