Written by : प्रमुख संवाद
कोटा, 19 मई। देशभक्ति अब केवल सीमा पर नहीं, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भी स्पष्ट रूप से नजर आ रही है। कोटा विश्वविद्यालय की वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों की निदेशक, प्रो. अनुकृति शर्मा ने तुर्की में होने वाले एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया है कि “राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं, और शिक्षा जगत भी इससे अछूता नहीं रह सकता।”
डॉ. शर्मा 22 से 25 मई तक तुर्की के दिदिम में आयोजित “द्वितीय अंतरराष्ट्रीय पर्यटन एवं सांस्कृतिक अध्ययन सम्मेलन” में की-नोट स्पीकर के रूप में आमंत्रित थीं। उन्हें “हमारे अतीत में निवेश करके स्थायी पर्यटन भविष्य का निर्माण: एक सांस्कृतिक विरासत आधारित दृष्टिकोण” विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधन देना था। परंतु हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले और तुर्की की भारत-विरोधी विदेश नीति को देखते हुए उन्होंने इस यात्रा से नाम वापस ले लिया।
सम्मेलन में भागीदारी से किया इनकार, टिकट भी रद्द
डॉ. शर्मा की 21 मई को इज़मिर से इस्तांबुल और 25 मई को इस्तांबुल होते हुए दिल्ली लौटने की टर्किश एयरलाइंस की टिकट पहले ही बुक हो चुकी थी, जिसे अब रद्द कर दिया गया है। उन्होंने अपने आवेदन में लिखा है, “वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों और भारत की संप्रभुता के मद्देनजर मैं इस सम्मेलन से अपनी भागीदारी समाप्त कर रही हूँ।”
तुर्की के दो विश्वविद्यालयों से MoU भी निरस्त
कोटा विश्वविद्यालय ने डॉ. शर्मा के इस निर्णय को संस्थागत स्तर पर समर्थन देते हुए तुर्की के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों से किए गए समझौता ज्ञापनों को भी तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। रजिस्ट्रार भावना शर्मा ने बताया कि जनवरी 2021 में सिनोप विश्वविद्यालय से हस्ताक्षरित मेवलाना विनिमय कार्यक्रम प्रोटोकॉल और मई 2024 में अफयोन कोकातेपे विश्वविद्यालय से किया गया शैक्षणिक सहयोग समझौता अब अमान्य कर दिया गया है।
राष्ट्रीय भावना को दी प्राथमिकता
भारतीय विश्वविद्यालय संघ (AIU) द्वारा 15 मई को भेजे गए एक पत्र में तुर्की सहित कुछ देशों की भारत-विरोधी गतिविधियों पर चिंता जताई गई थी। इस पत्र के बाद ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने तुर्की के साथ अपने सभी शैक्षणिक सहयोग की समीक्षा करते हुए यह कड़ा कदम उठाया।
रजिस्ट्रार भावना शर्मा ने कहा, “शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भी हमें देश की नीति और भावना के साथ खड़ा रहना होगा। डॉ. अनुकृति शर्मा का यह निर्णय प्रेरणास्पद है और विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”