Written by : Sanjay kumar
कोचिंग के नाम पर फैक्ट्री सिस्टम बंद हो- उपराष्ट्रपति धनखड़
कोटा, 12 जुलाई। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि देश में बेतहाशा फैलते कोचिंग सेंटर अब शिक्षा के केंद्र नहीं, बल्कि ‘पोचिंग सेंटर’ बन गए हैं। ये संस्थान सांचे में ढालने वाली फैक्ट्रियों की तरह कार्य कर रहे हैं, जो छात्रों की मौलिकता और जिज्ञासा को कुचल रहे हैं। उपराष्ट्रपति शनिवार को भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT), कोटा के चौथे दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।




धनखड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “कोचिंग सेंटर अब उस अंधी दौड़ का हिस्सा हैं, जिसने शिक्षा को ज्ञान की जगह नंबरों की होड़ बना दिया है। पूर्णांक और मानकीकरण का जुनून युवाओं की सोचने-समझने की शक्ति को समाप्त कर रहा है। यह रट्टा संस्कृति देश को बौद्धिक ज़ॉम्बी की ओर धकेल रही है।”
डिजिटल प्रभुत्व ही अब संप्रभुता की असली परीक्षा:
अपने भाषण में उपराष्ट्रपति ने भविष्य की चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि आने वाले समय में युद्ध हथियारों से नहीं, बल्कि ‘कोड, क्लाउड और साइबर’ की दुनिया में लड़े जाएंगे। उन्होंने कहा, “अब सेनाएं एल्गोरिद्म में बदल गई हैं। विदेशी डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भरता से संप्रभुता खतरे में पड़ सकती है। हमें तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना होगा।”
यह खबर देखें 👇
देशभक्ति की नई परिभाषा: टेक्नोलॉजिकल नेतृत्व
धनखड़ ने कहा, “अब तकनीकी नेतृत्व ही देशभक्ति की नई सीमा रेखा है। हमें भारत के लिए भारतीय सिस्टम बनाकर उन्हें वैश्विक स्तर पर पहुंचाना है। एक स्मार्ट ऐप जो गांवों में काम नहीं करता, वह पर्याप्त स्मार्ट नहीं है। हमें समावेशी डिजिटल समाधान विकसित करने होंगे जो दिव्यांगों और सभी वर्गों को साथ लें।”
कोचिंग को कौशल केंद्र में बदलने का आह्वान:
उपराष्ट्रपति ने कोचिंग संस्थानों से आग्रह किया कि वे अपने बुनियादी ढांचे का उपयोग स्किल डेवलेपमेंट सेंटर के रूप में करें। उन्होंने कहा, “सीटें सीमित हैं लेकिन कोचिंग संस्थान हर गली-मोहल्ले में खुले हैं। ये वर्षों तक छात्रों को एक ही ढर्रे में ढालते हैं, जिससे सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है। मनोवैज्ञानिक समस्याएं जन्म ले रही हैं। हमें कौशल आधारित शिक्षण की ओर बढ़ना होगा।”
असेंबली लाइन शिक्षा प्रणाली पर तीखा प्रहार:
उन्होंने कहा कि शिक्षा को एक फैक्ट्री की तरह चलाना खतरनाक है। “अखबारों और होर्डिंग्स पर भारी विज्ञापन खर्च छात्रों के पैसे से होता है। यह उस सभ्यता के विपरीत है जो ‘ज्ञानदान’ की परंपरा पर खड़ी है। यह खर्च शिक्षा की आत्मा पर बोझ बन गया है।”
डिग्री नहीं, सोच पर हो फोकस:
धनखड़ ने युवाओं से कहा, “आपकी पहचान आपकी मार्कशीट से नहीं, बल्कि सोचने-समझने की क्षमता से बनेगी। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में वही आगे बढ़ेगा जो समस्या का समाधान दे सकेगा, न कि सिर्फ अच्छे नंबर लाने वाला।”
राज्यपाल ने प्रेरित किया: “अप्प दीपो भवः” – स्वयं प्रकाश बनो
राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दीक्षांत जीवन की एक नई शुरुआत है। उन्होंने युवाओं को महात्मा बुद्ध के वाक्य “अप्प दीपो भवः” का स्मरण कराते हुए प्रेरित किया कि वे स्वयं प्रकाश बनें और समाज को आलोकित करें।
राज्यपाल ने कोटा को ‘औद्योगिक और शैक्षिक नगरी’ की संज्ञा दी और कहा कि यहां से निकलने वाले छात्र वैश्विक मंच पर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। उन्होंने डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, एम. विश्वेश्वरैया, सुंदर पिचाई और सत्य नडेला जैसे तकनीकी नवप्रवर्तकों का उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षा के माध्यम से युवाओं को सिर्फ नौकरी तलाशने वाला नहीं, बल्कि रोजगार सृजक बनना चाहिए।
189 विद्यार्थियों को डिग्रियां, 2 छात्रों को स्वर्ण पदक
समारोह में कुल 189 डिग्रियां प्रदान की गईं, जिनमें कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में 123, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में 62 और एमटेक की 4 डिग्रियां शामिल रहीं। शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए अंकुर अग्रवाल (सीएसई) और ध्रुव गुप्ता (ईसीई) को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
गणमान्य अतिथि रहे उपस्थित:
समारोह में राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर, ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर, संस्थान के चेयरमैन ले. जनरल (से.नि.) ए.के. भट्ट, निदेशक प्रो. एन.पी. पाढ़ी, कोटा दक्षिण विधायक संदीप शर्मा, लाडपुरा विधायक कल्पना देवी, जिला कलेक्टर पीयूष समारिया, एसपी डॉ. अमृता दुहन सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शिक्षकगण एवं अभिभावक उपस्थित रहे।