Written by : प्रमुख संवाद
कोटा, 19 जुलाई। गुरु आस्था परिवार कोटा के तत्वावधान में तथा सकल दिगंबर जैन समाज कोटा के आमंत्रण पर, तपोभूमि प्रणेता, पर्यावरण संरक्षक एवं सुविख्यात जैनाचार्य आचार्य 108 श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज का 37वां चातुर्मास महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक गरिमा के साथ संपन्न हो रहा है।
प्रवक्ता मनोज जैन आदिनाथ ने बताया कि दीप प्रज्वलन, पाद प्रक्षालन, शास्त्र विराजमान, आरती एवं पूजन जैसे मंगल अवसरों का पुण्य सौभाग्य दीपेन्द्र—त्रिशाला,मुदित—निशिता,अभिषेक—निधी सेठी परिवार,खातौली वाले रहे।
चातुर्मास का सौभाग्य कमलादेवी,राजेन्द्र,विनोद,लोकेश जैन सीसवाली वाले को प्राप्त हुआ। योगेश जैन सिंघम ने बताया कि शांतिधारा कर्ता परिवार कमलादेवी—लोकेश सीसवाली परिवार एवं अभिषेक—पिंकी जैन कोढारी रहे।
कार्यक्रम का संचालन अध्यक्ष लोकेश जैन सीसवाली ने किया। महामंत्री नवीन जैन दौराया ने बताया कि गुरूवर से आशीर्वाद लेने पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष रामबाबू सोनी,भाजपा नेता विवेक मित्तल,लक्ष्मणसिंह खीची,सकल समाज अध्यक्ष प्रकाश बज,तलवंडी जैन मंदिर अध्यक्ष अशोक पहाडिया सहित अहमदाबाद,कलोल,बडौदा गुजरात से आए भक्तों ने
आचार्य 108 श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज को श्रीफल भेंट किया।
जैनाचार्य ने अपने प्रवचन में कहा कि हर शास्त्र अपने आप में विशेष है, परंतु कोई भी पूर्ण नहीं है। इसलिए जैन धर्म के समस्त शास्त्रों का अध्ययन कर उनके सार तत्व को आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरु चरणों में श्रद्धा रखते हुए शास्त्रों का रसपान ही सच्चा आत्मकल्याण है।
मुनिश्री ने स्पष्ट किया कि जब व्यक्ति में देव, शास्त्र और गुरु के प्रति आस्था जागती है, तो संसारिक कर्मों के प्रति स्वाभाविक रूप से उदासीनता आ जाती है। साधु-संतों की संगति हमेशा जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि हर व्यक्ति संत न बन पाए, लेकिन संतोषी अवश्य बन सकता है और यही सच्चा सुख है।
प्रवचन के दौरान उन्होंने वर्तमान जीवनशैली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि लोग जन्म, मरण और परंपरागत कार्यों के लिए समय निकाल लेते हैं, किंतु धर्म के लिए उनके पास समय नहीं होता। उन्होंने बताया कि व्यापार से केवल धन की प्राप्ति होती है, जबकि धर्म से पुण्य अर्जित होता है और पुण्य से धन, सुख, शांति, आत्मीयता एवं समृद्धि स्वतः प्राप्त होते हैं। यह पुण्य ही जीवन का वास्तविक धन है।
उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि धन कमाएं, पर उससे अधिक पुण्य कमाने का प्रयास करें। मंदिर जाएं, प्रज्ञा लोक में प्रविष्ट हों और धर्म के प्रति समर्पण दिखाएं। उन्होंने कहा कि पैसा कमाना पुरुषार्थ है, परंतु पाप से अर्जित धन कभी शुद्ध नहीं होता। नीति, नियम, निष्ठा और ईमानदारी से किया गया कार्य ही पुण्य का कारण बनता है। इसलिए पुरुषार्थ अवश्य करें, लेकिन पाप से सदा बचें।
इस अवसर पर आयोजित गुरूपूजन एवं आरती समारोह में कोटा शहर के अनेक गणमान्य अतिथि एवं श्रद्धालु सम्मिलित हुए। महामंत्री नवीन जैन, कोषाध्यक्ष अजय जैन, शैलेन्द्र जैन ‘शैलू’, गुलाबचंद लुहाड़िया, मिलाप अजमेरा,विनय शाह,नितेश बडजातिया, अजय खटकिडा,अर्पित सराफ, भूपेन्द्र जैनविनय बलाला, लोकेश दमदमा,विकास मजीतिया,कपिल आगम,आशीष जैसवाल,अनिल दौराया,नवीन बाबरिया,विनोद जैन व संजीव जैन सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।