जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया, स्वास्थ्य कारणों के पीछे छिपे राजनीतिक संकेत? सियासी गलियारों में हलचल तेज

Written by : Sanjay kumar

नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज अचानक अपने पद से इस्तीफा देकर देश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। अपने त्यागपत्र में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को इस्तीफे की मुख्य वजह बताया है, लेकिन सियासी गलियारों में इसे केवल स्वास्थ्य तक सीमित न मानकर इसके राजनीतिक निहितार्थ भी तलाशे जा रहे हैं। धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंपते हुए अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को भी याद किया।


स्वास्थ्य कारणों के साथ इस्तीफा, अनुच्छेद 67 (A) का किया हवाला

धनखड़ ने अपने इस्तीफे में लिखा,

“स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकों की सलाह पर अमल करते हुए मैं संविधान के अनुच्छेद 67 (A) के तहत तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।”

ध्यान देने योग्य है कि मार्च 2025 में उन्हें दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) में सीने में दर्द और असहजता की शिकायत के बाद कार्डियक केयर यूनिट में भर्ती कराया गया था। अस्पताल से छुट्टी के बाद से ही उनकी सक्रियता सीमित हो गई थी।


धनखड़ ने अपने कार्यकाल को बताया “राष्ट्र निर्माण का सम्मानित काल”

धनखड़ ने अपने पत्र में लिखा कि उपराष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने भारत की अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति, वैश्विक प्रभाव में विस्तार और लोकतांत्रिक संस्थाओं के सशक्तिकरण को नजदीक से देखा। उन्होंने कहा,

“इस परिवर्तनकारी कालखंड में राष्ट्र की सेवा करना मेरे लिए गर्व और संतोष का विषय रहा।”


राजनीतिक गलियारों में उठ रहे कई सवाल

हालांकि धनखड़ ने स्वास्थ्य को कारण बताया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और विपक्षी दलों का मानना है कि इसके पीछे भीतरूनी राजनीतिक असहमति और हालिया कुछ संवैधानिक विषयों पर सरकार से टकराव भी भूमिका निभा सकते हैं। कुछ पत्रकारों और सूत्रों के अनुसार, धनखड़ ने पिछले कुछ महीनों में राज्यसभा की कार्यवाही के संचालन में खुद को असहज महसूस किया और कई मुद्दों पर सरकार से मौन मतभेद भी उभरे।


पक्ष-विपक्ष की प्रतिक्रियाएं

  • भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने धनखड़ के इस्तीफे को “स्वास्थ्य की दृष्टि से लिया गया दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन सम्माननीय निर्णय” बताया और उनके कार्यकाल की प्रशंसा की।
  • कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, “धनखड़ ने कई बार संवैधानिक मर्यादाओं की सीमाओं को लांघा, लेकिन उनका इस्तीफा संकेत देता है कि कुछ गंभीर बातें पर्दे के पीछे हैं।”
  • तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि “अब उन्हें विश्राम मिलेगा, जो उन्हें पश्चिम बंगाल में राज्यपाल रहते नहीं मिल पाया।”

राजनीतिक सफर और टकरावों से भरा कार्यकाल

धनखड़ का उपराष्ट्रपति बनने से पूर्व राजस्थान से वकील, सांसद और विधायक के रूप में लंबा अनुभव रहा है। वे 30 जुलाई 2019 को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त हुए थे, जहां उनका कार्यकाल लगातार विवादों और टकरावों से भरा रहा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से उनकी कई बार तीखी सार्वजनिक बहसें हुईं, और ममता ने उन पर “केंद्र सरकार के एजेंडे पर चलने” का आरोप भी लगाया था।


संविधानिक दायित्वों के निर्वहन में रहे मुखर

धनखड़ अपने कार्यकाल के दौरान कई बार राज्यसभा की गरिमा और नियमों की रक्षा में मुखर दिखाई दिए। उन्होंने अक्सर यह कहा कि “संसदीय लोकतंत्र में बहस, संवाद और विरोध आवश्यक हैं लेकिन मर्यादा का पालन अनिवार्य है।” विपक्षी दलों के वॉक्सआउट और नारेबाज़ी पर उनकी कड़ी टिप्पणियाँ सुर्खियाँ बनी थीं।


क्या अब शुरू होगा राजनीतिक पुनरागमन या संन्यास?

धनखड़ के इस्तीफे के बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या वे राजनीतिक रूप से पुनः सक्रिय होंगे या फिर पूरी तरह सार्वजनिक जीवन से विदा लेंगे? कुछ सूत्रों के अनुसार, राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी भविष्य की भूमिका को लेकर भी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं।


नया उपराष्ट्रपति कौन? नामों की अटकलें तेज

धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब देश के नए उपराष्ट्रपति को लेकर भी चर्चा तेज हो गई है। संभावित नामों में एक वरिष्ठ महिला राज्यपाल, एक अनुभवी पूर्व न्यायाधीश और एक दक्षिण भारतीय नेता का नाम सामने आ रहा है।


धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं माना जा सकता। यह भारतीय राजनीति में एक संकेतात्मक मोड़ है — जहां संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की स्वायत्तता, कार्यशैली और सत्ता से संबंधों को लेकर गहन चिंतन की आवश्यकता है। आने वाले दिनों में उनकी अगली भूमिका और नए उपराष्ट्रपति का चयन राजनीतिक विमर्श का केंद्र रहेगा।


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