जैविक खेती में प्राचीन परंपराओं और आधुनिक तकनीक का संगम आवश्यक: डॉ. एम.एल. जाट

Written by : प्रमुख संवाद


कोटा, 26 सितम्बर।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट ने कहा कि यदि गौ-आधारित परंपरागत विधियों को उच्च तकनीक के साथ जोड़ा जाए तो जैविक खेती में तीव्र विकास संभव है। वे शुक्रवार को कोटा जिले के जाखोड़ा स्थित गोयल ग्रामीण विकास संस्थान के श्रीरामशांताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के दौरे पर बोल रहे थे।

डॉ. जाट ने केंद्र में संचालित नवाचारों का अवलोकन किया, जिनमें –

  • ‘संजीवनी’ प्रयोग: देशी गाय के ताजे गोबर का उपयोग कर भूमि में लाभकारी जीवाणुओं का संवर्धन।
  • फसल पोषण घोल: गोमूत्र, चूना व पानी से तैयार घोल का फसलों पर छिड़काव।
  • कंपोस्ट निर्माण विधि: खेत-खलिहान व घरेलू अपशिष्ट से जैविक खाद निर्माण।
  • ‘पोषण वाटिका’ मॉडल: एक बीघा भूमि पर परिवार की अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जियां, फल, औषधीय पौधों व चारे की आत्मनिर्भर खेती।

उन्होंने किसानों से संवाद करते हुए कहा कि यह पद्धति सरल, किफायती और वैज्ञानिक दृष्टि से लाभकारी है। उन्होंने केंद्र को जैविक कृषि का प्रेरणादायी मॉडल बताते हुए इसकी सराहना की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान निदेशक ताराचंद गोयल ने की और आभार प्रकट अंशुल गोयल ने किया।


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