“जोहान्सबर्ग जी-20 में मोदी का ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का वैश्विक आह्वान — समावेश, न्याय और एकजुटता की दिशा में भारत की नेतृत्व भूमिका”


Written by : Sanjay kumar
स्थान: जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका
दिनांक: (23 नवंबर 2025)


प्रमुख बिंदु

  1. इतिहास-सृजन शिखर सम्मेलन
    मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि यह पहला G-20 शिखर सम्मेलन है जो अफ्रीकी महाद्वीप (दक्षिण अफ्रीका) में आयोजित हो रहा है, जिसे उन्होंने “वैश्विक साउथ के लिए ऐतिहासिक क्षण” कहा।
  2. विचारधारा: वसुधैव कुटुंबकम्
    उन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (One Earth, One Family, One Future) की अवधारणा को अपने भाषण का केंद्रीय संदेश बनाया।
  3. थीम के साथ तालमेल
    इस वर्ष G-20 की थीम “सॉलिडैरिटी, इक्वालिटी, सस्टेनेबिलिटी” है; मोदी ने इसे भारत की उस प्राचीन दर्शन के साथ जोड़कर पेश किया जो सभी मानवता की एकता और साझा भविष्य पर विश्वास करती है।
  4. समावेशी आर्थिक विकास
    पीएम मोदी ने ऐसे विकास मॉडल पर बल दिया, जिसमें गरीब और वंचित तक लाभ पहुंच सके। उन्होंने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे यूपीआई और स्वास्थ्य मॉडल) को उदाहरण के तौर पर पेश किया और सस्ती पूंजी एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता पर जोर दिया।
  5. जलवायु न्याय और लचीलेपन
    उन्होंने स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ विकसित बनाम विकास-शील देशों का मुद्दा नहीं है, बल्कि मानवता का संकट है। भारत का लक्ष्य 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा हासिल करना है। मोदी ने “लॉस एंड डैमेज फंड” को मजबूत करने की मांग की ताकि ग्लोबल साउथ को जलवायु क्षति के लिए इंसाफ मिल सके।
  6. ए. आई. (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) और बहुपक्षीय सुधार
    मोदी ने कहा कि ए. आई. को मानवता के मूल्यों से जोड़ना चाहिए ताकि यह असमानता न बढ़ाए। इसके अलावा, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में संरचनात्मक सुधार की वकालत की, ताकि वैश्विक गवर्नेंस अधिक प्रतिनिधि और समावेशी हो सके।
  7. आतंकवाद, महामारी और आर्थिक अस्थिरता के खिलाफ एकजुटता
    मोदी ने आतंकवाद, स्वास्थ्य आपदाओं और आर्थिक दाव-पेंचों जैसी चुनौतियों के खिलाफ “पूरा मानवतावाद” (पुर्ण मानवतावाद) की अवधारणा पेश की, जिसमें सभी देशों के कल्याण पर केंद्रित सहयोग हो।
  8. कूटनीतिक साझेदारी
    उन्होंने विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा सहित अन्य नेताओं का धन्यवाद किया और उनकी भूमिका को वैश्विक सशक्तिकरण के पर्याय के रूप में देखा।
  9. संसार में प्रतिक्रिया और ट्रेंड
    मोदी के भाषण के तुरंत बाद, सोशल मीडिया पर #ModiAtG20 ट्रेंड हुआ, जिससे उनके संदेश की व्यापक पहुंच और सकारात्मक प्रतिध्वनि स्पष्ट हुई।
  10. भविष्य की रूपरेखा
    सम्मेलन 23 नवंबर तक जारी रहेगा, और मोदी की यह उपस्थिति ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) को सशक्त आवाज देने और भारत की वैश्विक नेतृत्व की प्रतिष्ठा को और मजबूत करने का संकेत देता है।

विस्तृत विश्लेषण एवं गहराई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह भाषण न केवल प्रतीकात्मक महत्व रखता है, बल्कि व्यावहारिक और रणनीतिक मायनों में इसे बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा सकता है। नीचे इसके कुछ और गहराई वाले आयाम दिए जा रहे हैं:

  • ग्लोबल साउथ का सशक्तीकरण
    मोदी ने उस दृष्टि को फिर से जगाया है, जिसे भारत पिछले वर्षों से लगातार प्रस्तुत कर रहा है — विकासशील देशों को सिर्फ आर्थिक सहायता की दृष्टि से नहीं, बल्कि उनकी भागीदारी और आत्म-निर्भरता के दृष्टिकोण से जोड़ना। उनके यह विचार पिछले कुछ G-20 समारोहों और अन्य मंचों (जैसे ग्लोबल साउथ समिट) में भी साफ दिखे हैं।
  • क्लाइमेट फाइनेंस और न्याय
    जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर मोदी का फोकस सिर्फ ग्लोबल हीलिंग पर नहीं, बल्कि न्याय की मांग पर रहा। “लॉस एंड डैमेज फंड” को मजबूत करने का प्रस्ताव उन विकासशील देशों की आवाज को पहचान देता है जिन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रतিকूल प्रभाव झेलने की संभावना अधिक है, लेकिन संसाधन और वित्तीय ताकत कम होती है।
  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की वैश्विक मिसाल
    उन्होंने भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे यूपीआई, स्वास्थ्य सेवाओं (आयुष्मान भारत) का हवाला देते हुए यह दिखाया कि विकास सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि डिजिटली समावेशी भी हो सकता है। यह मॉडल अन्य विकासशील देशों के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकता है, खासकर उन देशों के लिए जहाँ बैंकिंग और स्वास्थ्य पहुंच सीमित है।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं का सुधार
    मोदी ने वैश्विक संस्थागत सुधार की जरूरत पर जोर दिया। उनका मानना है कि पारंपरिक बहुपक्षीय संस्थाएँ (जैसे यूएन) वर्तमान युग की चुनौतियों — तकनीकी बदलाव, ए. आई., असमानता — को प्रभावी रूप से हैंडल नहीं कर रही हैं, और उन्हें अधिक प्रतिनिधि, लोकतांत्रिक और न्यायसंगत बनाना चाहिए। यह विचार भारत की उस रणनीति के अनुरूप है जो उसे “वैश्विक रणनीतिक भागीदार” के रूप में स्थापित करना चाहती है, न कि सिर्फ विकासशील देश के रूप में।
  • मानवतावाद और एकजुटता
    मोदी की “पूरा मानवतावाद” की अवधारणा यह दर्शाती है कि भारत वैश्विक समस्याओं को सिर्फ राष्ट्रीय हित के नज़रिए से नहीं देखता; वह उन्हें साझा मानवता के दृष्टिकोण से देखता है। यह आभासी नारा नहीं है, बल्कि गहराई से विचार किया गया दृष्टिकोण है, जो आतंकवाद, महामारी और आर्थिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों का एकीकृत उत्तर खोजने की कोशिश करता है।
  • राजनीतिक-कूटनीतिक संदेश
    मोदी न सिर्फ विचारों और दर्शन का संदेश दे रहे हैं, बल्कि भारत की विदेश नीति और कूटनीति का भी एक शक्तिशाली संदेश भेज रहे हैं: भारत वैश्विक मंच पर सिर्फ एक आर्थिक खिलाड़ी नहीं है, बल्कि एक नैतिक, इंसानी और दृष्टि-आधारित लीडर है। यह दृष्टि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह G-20 जैसे शक्तिशाली मंच पर “ग्लोबल साउथ की आवाज” बनने का अवसर प्रदान करती है।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोहान्सबर्ग जी-20 शिखर सम्मेलन में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ पर केंद्रित संबोधन एक रणनीतिक मील का पत्थर है। यह न केवल भारत की वैश्विक नेतृत्व महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, बल्कि उसकी नीति को एक इंसानी और समावेशी दृष्टिकोण से भी मजबूत करता है। इसके माध्यम से भारत ने क्लाइमेट जस्टिस, डिजिटल समावेशन और बहुपक्षीय सुधारों को वैश्विक चर्चा के केंद्र में रखा है।

यह भाषण आने वाले दिनों में G-20 के घोषणापत्र और आने वाली नीतिगत पहलों में एक मजबूत आधार बन सकता है। भारत की यह भूमिका “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” के आदर्शों के अनुरूप न केवल कूटनीतिक दृष्टि से, बल्कि नैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।


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